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बदलते दौर में जीवनशैली की नई परिभाषा: सादगी, सततता और स्वास्थ के साथ संतुलन की तलाश

आज का समय तकनीक, तेज़ी और तड़क-भड़क का ज़माना जरूर है, लेकिन इसके बीच एक और चलन चुपचाप उभर रहा है — सरल, संतुलित और स्वास्थपूर्ण जीवन जीने की चाह। देशभर में अब लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को सिर्फ आरामदायक नहीं, बल्कि अर्थपूर्ण भी बनाना चाह रहे हैं।

‘स्लो लिविंग’ का चलन तेज़

लाइफस्टाइल विशेषज्ञों के अनुसार, बीते दो वर्षों में “स्लो लिविंग” यानी धीमी, सोच-समझकर जीने की जीवनशैली को अपनाने वालों की संख्या बढ़ी है। जहां पहले लोग मल्टीटास्किंग, ओवरटाइम और भागदौड़ में जीवन का संतोष खोजते थे, अब वही लोग आत्ममंथन, परिवार के साथ समय बिताने और खुद को समय देने की ओर मुड़ रहे हैं।

गुड़गांव की कॉर्पोरेट कंसल्टेंट आरती वर्मा बताती हैं, “पहले हफ्ते में 6 दिन काम और रविवार को भी फोन में बिज़नेस कॉल ही चलता रहता था। अब मैंने खुद के लिए ‘नो मीटिंग मंडे’ रखा है और रात 9 बजे के बाद फोन नहीं उठाती।”

भोजन में लौट रहा है देसीपन – मिलेट्स की वापसी

भारत के पारंपरिक मोटे अनाज — जैसे बाजरा, रागी, कंगनी और ज्वार — अब सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सीमित नहीं रहे। शहरी रसोइयों, पांच सितारा होटलों और फिटनेस कैफे में अब मिलेट्स से बना खाना परोसा जा रहा है।

दिल्ली के एक फिटनेस कैफे ‘फूडवेल’ के शेफ मनोज सिंह बताते हैं, “लोग अब व्हाइट ब्रेड और पिज्जा से हटकर ज्वार बेस पिज्जा, रागी इडली और बाजरे का खिचड़ा पसंद कर रहे हैं। स्वाद और सेहत दोनों में फायदा है।”

गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा ‘2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित किए जाने के बाद मिलेट्स को लेकर जागरूकता में तेज़ी आई। अब इसे फैशन नहीं, ज़रूरत के रूप में देखा जा रहा है, खासकर मधुमेह और मोटापे से जूझ रहे लोगों के बीच।

योग और मेडिटेशन का पुनर्जागरण

सिर्फ भोजन ही नहीं, मानसिक शांति की दिशा में भी लोग सक्रिय रूप से प्रयासरत हैं। पुणे, ऋषिकेश और मैसूर जैसे शहरों में योग और ध्यान सिखाने वाले केंद्रों में फिर से भीड़ उमड़ रही है। योग गुरुओं के अनुसार, 2024 में जहां ऑनलाइन मेडिटेशन क्लास में भाग लेने वाले लोगों की संख्या 3 लाख थी, 2025 में वह 9 लाख तक पहुंच चुकी है।

योग विशेषज्ञ भावना मिश्र कहती हैं, “ध्यान अब फैशन नहीं रहा, यह जरूरत बन चुका है। युवा भी अब नींद की कमी, चिंता और अवसाद से निपटने के लिए मेडिटेशन की शरण ले रहे हैं।”

सस्टेनेबल फैशन – अब स्टाइल के साथ ज़िम्मेदारी

कपड़ों की दुनिया में भी एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अब सिर्फ ट्रेंड नहीं, ट्रूथ भी मायने रखता है। खादी, ऑर्गेनिक कॉटन, बांस के रेशे और रिसाइकल्ड फैब्रिक से बने कपड़े फैशन ब्रांडों की नई पहचान बनते जा रहे हैं।

दिल्ली बेस्ड डिज़ाइनर विपुल शाह कहते हैं, “अब ग्राहक पूछते हैं — ‘ये फैब्रिक कहां से आया? पर्यावरण को नुकसान तो नहीं हुआ?’ यह बहुत सकारात्मक संकेत है।” कुछ नए ब्रांड जैसे “इकोवियर”, “पृथ्वी क्राफ्ट” और “बैक टू रूट्स” लोगों को जागरूक और सस्टेनेबल विकल्प दे रहे हैं।

माइक्रो ट्रैवल और सोलो जर्नी की लोकप्रियता

आज की नई पीढ़ी के लिए यात्रा अब सिर्फ छुट्टी मनाने का जरिया नहीं रही, बल्कि खुद को जानने का माध्यम बन गई है। कम बजट में कम भीड़ वाले स्थलों की तलाश बढ़ गई है। उत्तराखंड का पीठौरागढ़, महाराष्ट्र का हरिश्चंद्रगढ़ और अरुणाचल का तवांग जैसे शांत, लोकल कल्चर से भरपूर स्थान ट्रेंडिंग में हैं।

यात्री और ब्लॉगर रोहित दत्ता बताते हैं, “अब लोग कहते हैं — ‘हम 10 जगहों की फोटो नहीं, एक जगह का अनुभव लेकर लौटना चाहते हैं।’ यही असली ट्रैवल है।”

डिजिटल डिटॉक्स का बढ़ता असर

एक हालिया सर्वे के अनुसार, 18 से 35 साल की उम्र वाले लगभग 62% लोग अब महीने में एक बार ‘डिजिटल फास्टिंग’ कर रहे हैं — यानी बिना फोन, लैपटॉप और सोशल मीडिया के एक दिन बिताना।

आईटी कंपनी के सीनियर डेवलपर मनीष राज ने बताया, “मैं अब हर रविवार मोबाइल बंद कर देता हूँ। परिवार के साथ बैठना, किताब पढ़ना और खाना पकाना असली ‘रिफ्रेश’ है।”

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