भारत में स्वास्थ्य को लेकर लोगों की सोच पिछले कुछ वर्षों में गहराई से बदली है। महामारी के बाद लोगों ने न केवल फिजिकल फिटनेस को गंभीरता से लेना शुरू किया, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, पोषण, नियमित जांच और प्राकृतिक चिकित्सा को भी जीवन का हिस्सा बनाया है। हालांकि, देश में आज भी हेल्थकेयर एक्सेस, खानपान की गुणवत्ता, मानसिक बीमारियाँ और लाइफस्टाइल डिजीज़ जैसे मुद्दे गंभीर चुनौती बने हुए हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी, लेकिन शर्म और चुप्पी बनी चुनौती
देश के कई हिस्सों में अब लोग डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी और स्ट्रेस जैसे मानसिक रोगों को लेकर खुलकर बात करने लगे हैं। बड़े शहरों में मानसिक स्वास्थ्य ऐप्स जैसे ‘मनचेतना’, ‘माइंडब्रीद’ और ‘विचार संवाद’ की लोकप्रियता बढ़ रही है।
हाल ही में हुए एक राष्ट्रीय सर्वे में पाया गया कि 2024 के मुकाबले 2025 में थेरेपी लेने वालों की संख्या में 32% की वृद्धि हुई है। खासकर कॉर्पोरेट ऑफिसों और यूनिवर्सिटीज़ में अब साप्ताहिक काउंसलिंग सेशन सामान्य होते जा रहे हैं।
लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चुप्पी और सामाजिक कलंक की दीवारें कायम हैं। मानसिक रोगों को “पागलपन” या “कमजोरी” के रूप में देखे जाने की मानसिकता से बदलाव की ज़रूरत है।
भारत में ‘प्रिवेंटिव हेल्थकेयर’ की ओर बढ़ता झुकाव
अब स्वास्थ्य सेवाओं का फोकस इलाज से ज्यादा रोकथाम पर शिफ्ट हो रहा है। हेल्थ चेकअप पैकेज, वेलनेस ब्लड प्रोफाइल, हार्मोन बैलेंस टेस्ट और जीनोमिक स्कैन जैसी सेवाएँ तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।
बेंगलुरु स्थित हेल्थटेक स्टार्टअप ‘Welltrack’ की फाउंडर डॉ. श्रेया कपूर कहती हैं, “अब लोग सिर्फ बीमार पड़ने पर डॉक्टर के पास नहीं जाते, बल्कि हर छह महीने में पूरे शरीर की स्कैनिंग और थायरॉइड-शुगर प्रोफाइल जांच करवाते हैं।”
यह प्रवृत्ति ग्रामीण भारत तक भी पहुंच रही है जहाँ मोबाइल वैन क्लिनिक्स और सरकारी जनस्वास्थ्य योजनाओं ने प्रिवेंटिव स्क्रीङिंग को आम बना दिया है।
आधुनिक खानपान में भी आ रहा है संतुलन का भाव
2025 की लाइफस्टाइल रिपोर्ट दर्शाती है कि अब लोग “डाइटिंग” के नाम पर खुद को भूखा रखने की जगह “बैलेंस्ड न्यूट्रिशन” को महत्व दे रहे हैं। हाई-प्रोटीन, हाई-फाइबर और लो-ग्लाइसेमिक फूड्स की मांग तेजी से बढ़ी है।
डायटीशियन नेहा अरोड़ा के अनुसार, “अब लोग खाने के साथ पोषण की बात करते हैं। घरों में ओट्स खिचड़ी, सोया चाप, फ्लैक्ससीड रायता, और मिलेट उपमा जैसे ऑप्शन आम हो गए हैं।”
रेस्टोरेंट्स भी अब “न्यूट्री-बॉक्स”, “होलसम थाली” और “ग्लूटन-फ्री मेनू” जैसे ऑप्शन ग्राहकों को दे रहे हैं। यह साफ संकेत है कि भारत में भोजन सिर्फ स्वाद नहीं, अब स्वास्थ्य का माध्यम बनता जा रहा है।
लाइफस्टाइल डिजीज़ से खतरा अभी भी बरकरार
स्वस्थ खानपान और एक्सरसाइज़ के प्रयासों के बावजूद भारत में जीवनशैली जनित बीमारियाँ यानी लाइफस्टाइल डिज़ीज़ एक बड़ा खतरा बनी हुई हैं। मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च रक्तचाप (हाई बीपी), थायरॉइड और मोटापा जैसी बीमारियाँ अब 30 साल से कम उम्र के लोगों में भी देखी जा रही हैं।
इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल (ICMR) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2025 में डायबिटीज़ के मामलों में 18% की बढ़ोतरी हुई है, जो चिंताजनक है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि देर रात तक जागना, नींद की कमी, स्क्रीन टाइम का अत्यधिक उपयोग, और मानसिक तनाव इसकी मुख्य वजहें हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद की ओर वापसी
एक और उल्लेखनीय पहलु यह है कि अब लोग फिर से आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। नीम, तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय जैसे देसी जड़ी-बूटियों का सेवन अब नियमित हो गया है।
केरल, उत्तराखंड और कर्नाटक में प्राकृतिक चिकित्सा केंद्रों की मांग तेजी से बढ़ी है, जहाँ पंचकर्म, शिरोधारा और वमन जैसे आयुर्वेदिक उपचार लिए जा रहे हैं।
आयुष मंत्रालय के अनुसार, 2025 में आयुर्वेदिक दवाओं और वेलनेस सेवाओं के बाजार में 22% की वृद्धि दर्ज की गई है।
डिजिटल हेल्थ टेक्नोलॉजी ने चिकित्सा को बनाया स्मार्ट
आज भारत में टेलीमेडिसिन, डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन, स्मार्ट वियरेबल्स और AI आधारित डायग्नोसिस का इस्तेमाल बढ़ रहा है। स्मार्ट वॉच से ECG, BP और ब्लड ऑक्सीजन मापना अब आम बात हो गई है।
डॉ. अमन छाबड़ा (AIIMS दिल्ली) बताते हैं, “अब मरीज 10 मिनट में ऑनलाइन डॉक्टर से सलाह लेकर रिपोर्ट्स अपलोड कर सकते हैं, जिससे समय और खर्च दोनों की बचत होती है।”
राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) के तहत हेल्थ ID बनवाने वालों की संख्या जुलाई 2025 तक 19 करोड़ पार कर चुकी है, जो डिजिटल स्वास्थ्य क्रांति का संकेत है।