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रुपया डॉलर के मुकाबले 87.59 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँचा: विदेशी निवेश की भारी निकासी से बाजार में हलचल

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भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.59 के स्तर पर पहुँच गया, जो अब तक का सबसे निचला रिकॉर्ड है। यह गिरावट वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, विदेशी निवेशकों की भारी निकासी और अमेरिका की नई व्यापार नीतियों के चलते आई है। मुद्रा बाज़ार में यह घटना निवेशकों और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय बन गई है।


गिरावट के मुख्य कारण

अमेरिका द्वारा आयात शुल्क की घोषणा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत सहित कई देशों से आयातित वस्तुओं पर 25% तक शुल्क लगाने की घोषणा की है। इस फैसले से वैश्विक व्यापार असंतुलन और निवेशकों में चिंता बढ़ी है।

FII की पूंजी निकासी

विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने केवल 9 कारोबारी दिनों में ₹27,000 करोड़ से अधिक की निकासी की है, जिससे मुद्रा बाजार पर दबाव बढ़ा।

डॉलर की मजबूती

अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और डॉलर की मांग में तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं कमजोर हो रही हैं।

कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि

कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में 90 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गई हैं। भारत तेल का सबसे बड़ा आयातक है, जिससे डॉलर की मांग और बढ़ती है।


बाजार पर असर

शेयर बाजार में गिरावट: सेंसेक्स में 412 अंकों की गिरावट देखी गई, जबकि निफ्टी 124 अंक नीचे बंद हुआ।

आयात पर असर: इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और फार्मास्युटिकल कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई, क्योंकि ये क्षेत्र डॉलर आधारित आयात पर निर्भर हैं।


आम जनता पर प्रभाव

ईंधन मूल्य में इज़ाफ़ा: पेट्रोल और डीज़ल के दाम में इस हफ्ते ₹2–₹3 प्रति लीटर तक बढ़ोतरी हुई है।

महंगाई बढ़ने की आशंका: आयातित वस्तुएं महंगी होने से रोज़मर्रा की चीज़ों पर असर पड़ेगा। खाद्य पदार्थों, मोबाइल फोनों, घरेलू गैजेट्स आदि के दाम बढ़ सकते हैं।

विदेश यात्रा और पढ़ाई महंगी: डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी के चलते विदेशी शिक्षा और टूर पैकेज महंगे हो गए हैं।


सरकार और RBI की प्रतिक्रिया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करते हुए डॉलर की बिक्री कर रुपये को संभालने का प्रयास किया है। Reuters की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय बैंक ने कई शॉर्ट पोज़ीशनों को क्लियर कर बाज़ार को स्थिरता प्रदान की।

वित्त मंत्रालय ने आश्वस्त किया है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत है और सरकार लगातार स्थिति की निगरानी कर रही है।


क्या यह संकट का संकेत है?

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. अजय मेहरा कहते हैं:

“यह स्थिति चिंता की ज़रूर है, लेकिन घबराने की नहीं। भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। सरकार को व्यापार घाटा कम करने और निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में तेजी से काम करना होगा।”


आगे की रणनीति क्या होनी चाहिए?

विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करें

स्थानीय निर्माण और निर्यात को बढ़ावा दें

डॉलर निर्भरता कम करने के लिए ऊर्जा नीति पर काम करें

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Arjun Mehta is a Delhi-based financial journalist covering the Indian stock market, corporate earnings, IPOs, and economic policy. With over 7 years of experience, he decodes complex financial trends into actionable insights for investors and entrepreneurs.
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